Saturday, October 24, 2009

Azadi--Weekly Hindi Newsletter-- Most Delhi Help Lines are Helpless


साप्ताहिक न्यूजलेटर
23 अक्तूबर 2009
हेल्पलेस हैं दिल्ली की ज्यादातर हेल्पलाइनें - प्रदीप सुरीन
उन्हें अपने एक रिश्तेदार से मिलने कनॉट प्लेस से प्रीत विहार जाना था। उन्हें हेल्पलाइन से कोई जानकारी नहीं मिली। पूछने पर विघ्नेश ने बताया कि उन्हें हिन्दी नहीं आती और जानकारी देने वाले को हिन्दी के अलावा कोई और भाषा नहीं आती है।
इसी तरह रोहिणी में रहने वाली शिल्पा ने अपने बुजुर्ग दादा की कानूनी मदद के लिए सीनियर सिटीजन हेल्पलाइन-1091 पर फोन किया। शिल्पा ने बताया कि दादा के पुश्तैनी मकान में किराएदार घर खाली नहीं कर रहा है, जिसके लिए उन्हें कानूनी सलाह चाहिए।
हेल्पलाइन ऑपरेटर ने सिर्फ इसलिए मदद नहीं की कि वहां से पुलिस की मदद ही दिलाई जा सकती है। बाकी लोगों की समस्या के लिए उनके पास कोई समाधान नहीं है। यह आपबीती सिर्फ कुछेक नहीं, बल्कि दिल्ली के ज्यादातर लोगों की है।
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समाजिक बदलाव के लिए अरुणा राय का समाधान - पार्थ जे शाह
जन कल्याण परियोजनाओं के मस्टर रोल के साथ काफी छेड़-छाड़ होता रहा है। कई बार अधिकतर ऐसे लोग जिनका मस्टर रोल में नाम होता है, वे वास्तव में काम पर मौजूद नहीं होते हैं और वास्तव में काम करने वाले कई लोगों का नाम मस्टर रोल में नहीं होता है। राजस्थान में अरुणा राय और उनके संगठन एमकेएसएस (मजदूर किसान शक्ति संगठन) ने इस मुद्दे पर काम करना शुरू किया। उनके कार्यकर्ता विभिन्न कार्यों के सरकारी मस्टर रोल की कॉपी लेते, कार्यस्थलों पर जाते, उसका मिलान करते और सूची में हुए किसी भी घपले को उजागर करते। शुरू में उन्होंने इसके लिए काफी संघर्ष किया। जब उन्हें कुछ सफलताएं मिलने लगीं, तो वे दूसरे अनेक कार्यस्थलों पर भी जाने लगे।
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बदसूरत बाजार
आधुनिक पूंजीवाद के सर्वाधिक पेचीदे विरोधाभास हैं घृणा, भय और अवमानना: जिसके साथ इसे आमतौर पर जोड़ कर देखा जाता है। समकालीन समाज की हर बुराई के लिए व्यवसाय, निजी लाभ के प्रयास और निजी स्वामित्व पर सीधे तौर पर आरोप मढ़ दिया जाता है। वे लोग जो बाजार के आलोचकों द्वारा डाले गए घृणा और अज्ञानता के आवरण को भेद डालते हैं, वे जाहिर तौर पर अपने आप से पूछेंगे कि इतना मूल्यवान सामाजिक संस्थान ऐसे सार्वभौमिक अवमानना और नापसंदगी का शिकार क्यों है? यह एक ऐसा सवाल है जिसका अपने आप में एक वैज्ञानिक आकर्षण है। पर सवाल की महत्ता, वैज्ञानिक उत्सुकता कहीं आगे तक जाती है। जैसा कि माइसेज ने कहा है, ''एक सामाजिक व्यवस्था कितनी ही लाभग्राही क्यों न हो, काम नहीं कर सकती यदि उसे जनमत का समर्थन प्राप्त न हो।''
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पूँजीवाद और लोभ
हम अपने भोजन की उम्मीद कसाई, पेय बनानेवाले या नानबाई की उदारता से नहीं करते बल्कि अपने स्व-हित के प्रति उनके आदर से करते हैं। हम अपने आप से उनकी मानवता के बारे में बात नहीं करते बल्कि उनके स्व-प्रेम की बात करते हैं और उनसे कभी भी अपनी आवश्यकताओं का जिक्र नहीं करते बल्कि उनके नफे का उल्लेख करते हैं।
अत: स्व-हित का बल ही किसी व्यक्ति के क्रियाकलापों को निर्धारित करता है। पूंजीवादी समाजों के इस व्यावहारिक धर्म की तुलना ईसाई धर्म की सोच या नैतिकता के किसी भी पैमाने पर करना मुश्किल है। निश्चित तौर पर ईसा के उपदेश में यह तथ्य निहित है कि किसी व्यक्ति के कार्यों का मार्गदर्शक स्व-हित के बजाय पड़ोसियों के प्रति प्रेम व दया-भाव होना चाहिए।
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घोषणायें
पत्रकारों के लिए लोक नीति पर सर्टिफिकेट कोर्स
यह कोर्स मध्यम स्तर के मीडिया पेशेवरों के लिए है जिन्हें कुछ अनुभव प्राप्त है. इनमें वरिष्ठ संवाददाता, फीचर लेखक, बीट रिपोर्टर, असिस्टेंट/सब- एडिटर आदि शामिल हैं.
यह कोर्स हिंदी प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, रेडियो और ऑनलाइन मीडिया के सभी पत्रकारों के लिए खुला है और इनके जो पत्रकार चाहें यहां सीधे सीसीएस को आवेदन कर सकते हैं.
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सभी के लिए गुणवत्तापरक शिक्षा पर संवाद:"भारतीय बच्चों के लिये शिक्षा: गरीब क्यों पब्लिक स्कूल चुनते हैं? "4 नवम्बर 2009, शाम 6:30 से 8:00 बजे तक कैसुआरिना हाल, इंडिया हैबिटेट सेंटर , नई दिल्ली शामिल होने के लिए संपर्क करें: baishali@ccs.in या देखें: http://schoolchoice.in
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