Saturday, September 5, 2009

Dr. Prabhat Das Foundation--New York--Bihar

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Azadi Hindi Newsletter--Issue 2- September 4,2009

साप्ताहिक न्यूजलेटर

04 सितम्बर 2009

क्यों गरीब है भारत? एजेंडा नए भारत के लिए

आज़ादी के 53 साल बाद, 2001 में भारत की आर्थिक दशा पर एक विचारोत्तेजक विश्लेषण में कंवल रेखी ने उन कारणों की सिलसिलेवार समीक्षा की थी कि क्यों है भारत गरीब और अमेरिका अमीर. दरअसल 2001 के बाद से सारी दुनिया के साथ भारत ने तरक्की के कई मुकाम हासिल किए लेकिन इस गहन विश्लेषण में ऐसे कई विचारणीय मुद्दे हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं

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उदारवादी साहित्य: टॉम जी पामर

इस संग्रह में उदारवादी परंपरा की मानक कृतियां उद्धरण के तौर पर या समग्र रूप में शामिल हैं। यह छोटी निर्देशिका मुख्य पुस्तक की परिशिष्ट है जिसका उद्देश्य उन पाठकों की मदद करना है जो उदारवाद के आधारों, निहितार्थो और आश्वासनों को गहराई से जनने की इच्छा रखते हैं। देखा जाए तो आज उदारवाद नैतिक सिद्धांत, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास और अन्य मानव विज्ञानों में मौजूद समस्त बहसों, साथ ही साथ पूरे विश्व में दिख रहे प्रत्यक्ष राजनीतिक संघर्षो का वस्तुत: केन्द्रीय विषय है। यहां पर महत्वपूर्ण बात यह है कि हम इस तरफ न सिर्फ एक समर्थक के नजरिये से, बल्कि एक समालोचक की दृष्टि से भी देखें।

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आज़ादी ब्लॉग: क्यों बचे रहें मंत्रीजी?

वक्त से पहले और जरूरत से ज्यादा, जितनी जल्दी हो सके, पा लेने की चाह ने भारत के नागरिकों को उतना ईमानदार नहीं रखा जितना लॉर्ड मैकाले की भारत यात्रा के दौरान वे थे. मैकाले ने अपने देश लौट कर ब्रिटिश संसद में 2 फरवरी 1835 को दिए अपने भाषण में भारतीयों की ईमानदारी की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी. सरकारी दफ्तर में काम करवाने वाले लेन-देन की भाषा को न सिर्फ समझ गए हैं बल्कि इसे अपरिहार्य मान कर इसे अपनाने लगे हैं. कोई इस लेन-देन नहीं मानता. कहीं आप रूटीन काम के लिए “फीस” देते हैं तो कहीं मजबूरी में “चाय-पानी”. लेकिन यदि कोई इसके जरिये अपनी “सेटिंग” करना चाहता हैं तो “मिठाई का डिब्बा” “पेटी” या “खोखा” तक देने में ऐतराज नहीं होता, बस किसी तरह अपना काम निकलना चाहिए.

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सफलता की एक और पायदान
जीविका एशिया लाइवलीहुड डाक्युमेंटरी फेस्टिवल, 2009

अपनी एक खास पहचान रखने वाला सेंटर फॉर सिविल सोसायटी का जीविका एशिया लाइवलीहुड डाक्युमेंटरी फेस्टिवल, 2009 का आयोजन 28-30 अगस्त को नई दिल्ली के इंडिया हैबीटेट सेंटर में किया गया. इस साल 22 देशों के 175 वृत्तचित्रों में से 11 को शार्टलिस्ट किया गया. जिनका प्रदर्शन 28-29 अगस्त को हुआ. फेस्टिवल के अंतिम दिन 30 अगस्त को स्टुडेंट्स और प्रोफेशनल वर्ग के विजेताओं को जीविका ट्राफी और सर्टिफिकेट से नवाजा गया.

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नोबेल पुरस्कार विजेता: अमर्त्य सेन

व्यक्तिगत कल्याण की तुलनीयता के अपने विश्लेषण के आधार पर, अमर्त्य सेन ने कल्याण, आय असमानता और गरीबी के लिए सूचकों का प्रस्ताव किया है जिनका पहले ही व्यापक प्रयोग किया जा रहा है। कुछ युक्तिसंगत सूक्तियों से इन सूचकों की उत्पति करके सेन ने भिन्नता वाले सामाजिक राज्यों का मूल्यांकन आसान बना दिया है-यदि सूचक के पीछे सूक्ति यथोचित प्रतीत होती है तो सूचक के अनुसार वर्गीकरण भी उचित होगा। अपने अत्यन्त उग्र रूप में गरीबी भूख की ओर ले जाती है जिसपर अमर्त्य सेन ने अकाल की उत्पति के व्यापक अध्ययनों में चर्चा की है। इन अध्ययनों में, सामान्य पूर्वधारणाओं में कि अकाल सदा खाद्यान्न की सप्लाई में कमी से सम्बध्द होते हैं, सुधार करते हुए उसने अकाल और भुखमरी के नये विचार का मार्ग प्रशस्त किया।

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आज़ादी.मी पर स्वामीनाथन अय्यर

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Azadi--Weekly Hindi News Letter by Center for Civil Society

From: "azadi.me"
To:
Subject: AZADI.ME Weekly Newsletter (28 August 2009)
Date: Friday, August 28, 2009 1:20 AM

Azadi.me न्यूजलेटर

साप्ताहिक न्यूजलेटर

28 अगस्त 2009

देश का पहला उदारवादी हिंदी पोर्टल आज़ादी.मी लांच

हिंदीभाषियों को उदारवादी मुद्दों पर अंर्तदृष्टि और सुझाव देने के लिए सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी, एटलस वैश्विक पहल एवं कैटो इंस्टीट्यूट की संयुक्त नई पहल है आज़ादी.मी। इस वेबसाइट में उदारवादियों के उच्च कोटि के लेखन-कार्य, समकालीन समस्याओं पर स्वतंत्र विचार, ब्लॉग, डिस्कशन बोर्ड और अन्य उदारवादी संस्थाओं की विचारधारा के प्रकाशन, शोधपत्र, वीडियो, पोडकास्ट आदि होंगे। यह वेबसाइट कानून बनानेवालों और हिंदी समुदाय से संपर्क बनाने का एक शक्तिशाली एवं प्रभावशाली साधन होगी जिसकी पहुंच अंग्रेजी संचार की अपेक्षा भारत में बड़े पैमाने पर है।

आज़ादी की 62वीं वर्षगांठ पर एशिया के शीर्ष आठवें थिंक टैंक सेंटर फॉर सिविल सोसायटी ने शुक्रवार 14 अगस्त को उदारवादी सोच रखने वाले लोगों के लिए इस पोर्टल 'आज़ादी.मी' को लांच किया। इस पोर्टल का उद्देश्य लोगों को जीवन के हर क्षेत्र में उदारवादी विचारों के प्रति जागरूक करना है।

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आज़ादी.मी पोर्टल लाँच समारोह (14-अगस्त-2009)
(बडा फोटो देखने के लिये किसी भी फोटो पर क्लिक करें)

मुख्य अतिथि आज़ादी.मी पोर्टल लाँच करते हुए मुख्य अतिथि आज़ादी.मी मग के साथ
"इस पहल से एक बात साफ हो जाती है कि हिंदी सबकी जरूरत बनती जा रही है और इस दिशा में देशी व विदेशी संस्थाएं सामने आने लगी है। अगर आज़ादी.मी लोगों को अपने बारे में सोचने के लिये मज़बूर कर देगी तो यह अपने आप में एक बहुत बडी उपलब्धि होगी" - वेद प्रताप वैदिक
"आज लोग अपने हर काम के लिए दूसरों पर निर्भर होते जा रहे हैं और ऐसे में हम अपनी आजादी को कहीं न कहीं गवां रहे है। हमें अग्रेजों से आजादी मिले हुए 62 वर्ष हो गए लेकिन सही मायने में आजादी के लिए हमे एक बार फिर दूसरी लड़ाई की शुरुआत करने की जरूरत है।" - श्रवण गर्ग
"देश ने वर्ष 1991 में उदारीकरण के साथ वास्तविक आजादी की शुरुआत की लेकिन हमें अभी इस दिशा में काफी आगे जाना है। जब तक शासन प्रणाली नही सुधरेगी, भारत में समृद्धि फैलेगी लेकिन खुशहाली नहीं। " - गुरुचरण दास
"आज़ादी.मी विश्व के बेहतरीन उदारवादी विचारों को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सामने लाने का एक प्रयास है। हमें स्वतंत्रता से संपूर्ण आज़ादी की ओर जरूर बढ़ना चाहिये।" - पार्थ जे शाह

विशेष लेख - नेशनल स्कूल वाउचर्सः एक सराहनीय नई पहल
लेखक: पार्थ जे. शाह, अध्यक्ष, सी.सी.एस

आरटीई विधेयक के माध्यम से सरकार ने एक विश्व का सबसे दबंग शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया है. इसे उचित और प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करना भी उतनी ही बड़ी चुनौती होगी. उच्च वर्ग के बच्चों के साथ जब गरीब और असहाय अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए स्कूल भेजेंगे तब उन्हें सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक दबाव झेलने होंगे.

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विशेष लेख - जिन्ना तो बस एक गोटी हैं
लेखक: डा. वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विचारक

पार्टी का संसदीय बोर्ड तो सरकार के मंत्रिमंडल से भी अधिक शक्तिशाली निकाय होता है| यह निकाय अगर अपने एक वरिष्ठ साथी पर इस तरह अचानक गाज गिरा सकता है तो उस पर क्या भरोसा किया जाए? यह किसी भी देश पर अकारण ही परमाणु बम भी गिरा सकता है| ऐसे गैर-जिम्मेदार संसदीय बोर्ड को भाजपा कार्यकर्ता क्यों बर्दाश्त करें?

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गुरचरण दास आज़ादी.मी पर आपका स्वागत करते हुए

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